Marital Rape के मामले की सुनवाई को टाल दिया है
Marital Rape के मामले की सुनवाई को टाल दिया है हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने , यह कहते हुए कि चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के कार्यकाल में इस मुद्दे पर निर्णय लेना असंभव हो सकता है। यह मामला भारत में महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शादी के भीतर यौन संबंधों की सहमति के अधिकार से जुड़ा है।
क्या है Marital Rape Case?
Marital Rape (वैवाहिक बलात्कार) का मतलब है कि शादी के संबंध में जबरन यौन संबंध स्थापित करना, जिसे कानूनी तौर पर अन्य बलात्कारों की तरह दंडनीय नहीं माना जाता। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 में एक अपवाद दिया गया है, जिसके तहत 15 साल से अधिक उम्र की पत्नी के साथ पति द्वारा किया गया यौन संबंध बलात्कार नहीं माना जाता।
Marital Rape Case का महत्व
यह मुद्दा महिलाओं के लिए खासतौर पर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनके शरीर पर उनके अधिकार की रक्षा करता है। Marital Rape के खिलाफ कानूनी प्रावधान न होने से महिलाओं को उनके विवाह के भीतर हिंसा और उत्पीड़न से बचने का कोई कानूनी रास्ता नहीं मिलता। यह महिलाओं की समानता और स्वायत्तता का सीधा उल्लंघन है।
इस कानून के लाभ
Marital Rape के खिलाफ कानून लागू होने से:
- महिलाओं की सुरक्षा बढ़ेगी: शादी के भीतर जबरन यौन संबंधों को भी अपराध की श्रेणी में लाया जाएगा।
- समानता का अधिकार: यह कानून महिलाओं को शादी के बाहर और भीतर दोनों स्थितियों में समान अधिकार देगा।
- महिलाओं के प्रति अपराध में कमी: जब पति भी कानून के अंतर्गत आएंगे, तो विवाह में होने वाली हिंसा में कमी आ सकती है।
- नारी सशक्तिकरण: यह कदम महिलाओं को विवाह के भीतर अपनी शारीरिक स्वायत्तता को सुरक्षित करने का हक देगा।
यह मामला महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है, और सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है
क्या कहता है पुराना कानून?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा दी गई है, लेकिन इसमें एक खास अपवाद है जो Marital Rape (वैवाहिक बलात्कार) को इस परिभाषा से बाहर रखता है। कानून के अनुसार, अगर पति अपनी 15 साल या उससे अधिक उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाता है, तो इसे बलात्कार नहीं माना जाएगा, भले ही पत्नी की सहमति न हो। इस अपवाद के चलते शादी के भीतर जबरन यौन संबंध को अपराध नहीं माना जाता, जिससे पति पर कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती थी।
यह कानून लंबे समय से विवाद का विषय रहा है क्योंकि इसे महिलाओं के अधिकारों और उनकी शारीरिक स्वायत्तता का उल्लंघन माना जाता है। आलोचकों का कहना है कि यह प्रावधान महिलाओं को अपने ही विवाह में हिंसा और उत्पीड़न से सुरक्षित नहीं रखता।
भारत में Marital Rape के खिलाफ अब तक कोई स्पष्ट कानून नहीं था। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा दी गई है, लेकिन इसमें एक विशेष अपवाद था। इस अपवाद के अनुसार, अगर कोई पति अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाता है, और पत्नी की उम्र 15 साल से अधिक है, तो इसे बलात्कार नहीं माना जाएगा। यह अपवाद यह मानता है कि विवाह के भीतर सहमति स्वतः ही दे दी जाती है, भले ही पत्नी उस संबंध के लिए तैयार न हो।
इस कानून के तहत, यदि पत्नी पति के खिलाफ जबरन यौन संबंधों का आरोप लगाती भी है, तो उसे वैवाहिक बलात्कार के रूप में नहीं देखा जाएगा और पति को सजा नहीं होगी। इस अपवाद का लंबे समय से आलोचना होती रही है क्योंकि यह महिलाओं के अधिकारों और उनकी शारीरिक स्वायत्तता का उल्लंघन करता है।
अब यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, और इसका फैसला महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
इसमें पुरुषों के क्या नुकसान है
Marital Rape कानून के तहत पुरुषों को कुछ चुनौतियों और नकारात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है। यहां कुछ संभावित नुकसानों का उल्लेख किया गया है:
- झूठे आरोपों की संभावना: आलोचकों का मानना है कि अगर Marital Rape को अपराध घोषित कर दिया जाता है, तो यह कानून पुरुषों के खिलाफ गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ लोग चिंता करते हैं कि इसका दुरुपयोग करके महिलाओं द्वारा अपने पतियों पर झूठे आरोप लगाए जा सकते हैं, खासकर तलाक या वैवाहिक विवाद के मामलों में।
- विवाह संस्था पर प्रभाव: केंद्र सरकार और कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यदि विवाह के भीतर Marital Rape को अपराध घोषित किया जाता है, तो यह विवाह संबंधों को अस्थिर कर सकता है और परिवार संस्था को कमजोर कर सकता है। इससे वैवाहिक रिश्तों में अविश्वास और तनाव बढ़ सकता है।
- अंतरंग रिश्तों की गोपनीयता में हस्तक्षेप: कुछ लोगों का तर्क है कि कानून अगर पति-पत्नी के निजी और अंतरंग संबंधों में हस्तक्षेप करेगा, तो इससे उनके रिश्ते के सहज और स्वाभाविक पहलू प्रभावित हो सकते हैं। यह एक ऐसी स्थिति बना सकता है जहां पति-पत्नी के बीच के संबंध कानूनी नियमों के आधार पर तय किए जाएं, जो स्वाभाविक रिश्तों के लिए सही नहीं माना जाता।
- अपराध का जटिल होना: बलात्कार के अन्य मामलों की तुलना में Marital Rape के मामलों में सहमति का निर्धारण करना बहुत कठिन हो सकता है। इससे न्यायिक प्रक्रियाओं में जटिलता और देरी हो सकती है, जिससे आरोपियों और पीड़ित दोनों के लिए तनाव बढ़ सकता है।
हालांकि, समर्थक यह तर्क देते हैं कि महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिए इस कानून का होना आवश्यक है, भले ही इसके कुछ पुरुषों पर नकारात्मक प्रभाव हों। DesiiNews